आज तुम चली गयी
जाते जाते हमें अन्दर तक झकझोर गयी
सोई हुई पीढ़ी को फिर से जगा गयी
हिजड़ो से भरी सरकार में साहस नहीं
आश्वासन से मनमोहन नहीं होगा
अब तो खुद ही आगे बढ़ना है
एक दूसरे की हिम्मत बनना है
ज्योत से ज्योत जलाना है
एक नया समाज बनाना है
नहीं थमेगा ये कारवां
जब तक इन्साफ नहीं होगा
माँ-बहने जब तक महफूज़ नहीं
क्रोध ये शांत नहीं होगा
तूफ़ान जो अब इस सीने में उमड़ा है
अब वो सैलाब बन कर रहेगा
करने पड़े चाहे जितने जतन
अब तो फैसला हो कर रहेगा
This poem is in memory of “Amanat” who has become the symbol of new awakening in India. RIP sister. We will ensure that your sacrifice does not goes in vain.