आवाज़ जो हमारी सरकार को सुने नहीं देती
राष्ट्र की पीड़ दिखाई नहीं देती
ये कैसा समय आ गया गाँधी के देश में
अहिंसा से अपनी बात रखने वालों की पुकार
सिंघासन पर काबिज जन प्रतिनिधि को श्रवण नहीं करती
इससे बड़ा कलंक लोकतंत्र पर क्या होगा
जहाँ तानाशाही इस कद्र बढ़ गयी है
जो जनता को उपेक्षित है कर देती
बीते वर्ष में हमारी सरकार ने हर बार यही सन्देश दिया
कुछ भी हो जाए हम तुम्हे नहीं सुनेंगे भैया
अपनी ताक़त दिखानी हो तो राजनीती में मुकाबला करो
और अपना रास्ता खुद तय करो
प्रजातंत्र में अब शांति-आन्दोलन की जगह नहीं
दुर्भाग्य है इस मुल्क का
जहाँ जन सेवा के नाम पर सिर्फ मेवा खाया जा रहा है
खुदगर्जी में सराबोर अपना बैंक बैलेंस बढाया जा रहा है
लोकतंत्र पर ये अघात नहीं सहा जाएगा
अब तो सबक सिखाया जाएगा
छोड़ गाँधी की लाठी अब आज़ाद की पिस्तोल बोलेगी
जरूरत पड़ी तो संसद में, सड़कों पर लड़ा जाएगा
क्या करें देश वालों मजबूरी है, क्यूंकि
शांति-आन्दोलन हमारी सरकार को दिखाई नहीं देता
और तब अगर बुद्धजीवियों ने प्रवचन दिया
तब उनको भी लताड़ा जाएगा
आज कायदा कानून तरीके से परे हो कर
लोग परिणाम की चिंता करते हैं
मिटटी ये उद्घोष करती है
स्वंतंत्रता के ६६वी वर्षगाँठ पर
उठो देश के लाल और बचा लो अपनी माँ को
जिसे उसके ही कुछ सपूत लूट रहे हैं
अब गाँधी नहीं सुभाष चाहिए, देशद्रोहियों का संघार चाहिए
जो देश को उन्नत बना सके सिर्फ वही देशभक्त चाहिए!
इस स्वाधीनता दिवस ये संकल्प करें
न्योछावर कर देंगे खुद को वतन पर गर आवश्यकता पड़ी
राष्ट्र धर्म से बढ़ कर न ही राज धर्म न ही गठबंधन धर्मं है और न ही कोई और!!