Poem by Harivansh Bachchan!

मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़ – हरिवंश राय बच्चन

कभी नही जो तज सकते हैं, अपना न्यायोचित अधिकार
कभी नही जो सह सकते हैं, शीश नवाकर अत्याचार
एक अकेले हों, या उनके साथ खड़ी हो भारी भीड़

मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

निर्भय होकर घोषित करते, जो अपने उदगार विचार
जिनकी जिह्वा पर होता है, उनके अन्तर का अंगार
नहीं जिन्हें, चुप कर सकती है, आतताइयों की शमशीर

मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

नहीं झुका करते जो दुनिया से करने को समझौता
ऊंचे से ऊंचे सपनों को देते रहते जो न्योता
दूर देखती जिनकी पैनी आँखें, भविष्य का तम चीर

मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

जो अपने कन्धों से पर्वत से बढ़ टक्कर लेते हैं
पथ की बाधाओं को जिनके पाँव चुनौती देते हैं
जिनको बाँध नहीं सकती है लोहे की बेड़ी जंजीर

मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ

जो चलते हैं अपने छप्पर के ऊपर लूका धर कर
हर जीत का सौदा करते जो प्राणों की बाजी पर
कूद उदधि में नही पलट कर जो फ़िर ताका करते तीर

मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

जिनको यह अवकाश नही है, देखें कब तारे अनुकूल
जिनको यह परवाह नहीं है कब तक भद्र, कब दिक्शूल
जिनके हाथों की चाबुक से चलती है उनकी तकदीर

मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

तुम हो कौन, कहो जो मुझसे सही ग़लत पथ लो तो जान
सोच सोच कर, पूछ पूछ कर बोलो, कब चलता तूफ़ान
सत्पथ वह है, जिसपर अपनी छाती ताने जाते वीर

मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़

Leave a Comment

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s